छत्तीसगढ़
पितरों का श्राद्ध कौन कर सकता है? पितृ पक्ष से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण नियम
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितरों के प्रसन्न रहने से घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली का वास होता है। अगर पितर नाराज हो जाएं तो बनते काम भी बिगड़ने लगते हैं, इसलिए माता-पिता को खुश रखना बहुत जरूरी है. इसके लिए पितृ पक्ष के 15 दिन बेहद खास होते हैं। इस दौरान पितरों के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है और इसे शास्त्रों में बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
- धर्म शास्त्रों के अनुसार पितरों का श्राद्ध करने का पहला अधिकार ज्येष्ठ पुत्र को होता है। यदि बड़ा पुत्र जीवित न हो तो छोटा पुत्र श्राद्ध कर सकता है।
- यदि बड़ा पुत्र विवाहित है तो उसे अपनी पत्नी सहित श्राद्ध करना चाहिए। इससे माता-पिता खुश होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
- हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार श्राद्ध करने का अधिकार केवल पुत्र को ही है। यदि किसी व्यक्ति का कोई पुत्र नहीं है तो उसके भाई का पुत्र यानि भतीजा भी उसका श्राद्ध कर सकता है।
- जिस दिन घर में पितरों का श्राद्ध हो उस दिन श्राद्ध में अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
- यदि कोई जनेऊ धारण करता है तो पिंडदान के समय उसे बाएं कंधे की बजाय दाएं कंधे पर रखें।
- ध्यान रखें कि पिंडदान हमेशा सूर्य उगते समय ही करना चाहिए। अर्थात पिंडदान या श्राद्ध कर्म सुबह ही करना होता है। पिंडदान शाम के समय या अंधेरे में नहीं किया जाता है।
- पिंडदान के लिए कांसे, तांबे या चांदी के बर्तन, थाली या थाली का उपयोग करना चाहिए।
- पितरों का श्राद्ध करते समय मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।