भारत को घोर गरीबी के उन्मूलन में मिली कामयाबी, अमेरिकी थिंक टैंक ने खपत खर्च डाटा के आधार पर किया अध्ययन
अध्ययन में कहा गया है कि कुल आबादी में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों (प्रतिदिन 1.90 डालर से कम खर्च करने वाले) की संख्या 2011-12 की 12.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में दो प्रतिशत आ गई। यह गरीबों की संख्या में हर वर्ष 0.93 प्रतिशत की कमी के बराबर है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या घटकर 2.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में एक प्रतिशत रह गई है।अध्ययन में कहा गया है कि कुल आबादी में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों (प्रतिदिन 1.90 डालर से कम खर्च करने वाले) की संख्या 2011-12 की 12.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में दो प्रतिशत आ गई। यह गरीबों की संख्या में हर वर्ष 0.93 प्रतिशत की कमी के बराबर है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या घटकर 2.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में एक प्रतिशत रह गई है।
गिनी एक प्रकार का सूचकांक है जो आय वितरण की असमानता को दर्शाता है। अध्ययन में कहा गया है कि असमानता में यह गिरावट ऐतिहासिक है। घोर गरीबी के लगभग खात्मे के बाद भारत को अब गरीबी रेखा का मापक स्तर ऊंचा करना चाहिए। इससे वास्तविक गरीबों तक पहुंच के लिए मौजूदा सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को फिर से परिभाषित किया जा सकेगा। यह अध्ययन अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला और करण भसीन ने तैयार किया है।
गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या में बड़ी गिरावट
अध्ययन में कहा गया है कि कुल आबादी में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों (प्रतिदिन 1.90 डालर से कम खर्च करने वाले) की संख्या 2011-12 की 12.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में दो प्रतिशत आ गई है। यह गरीबों की संख्या में हर वर्ष 0.93 प्रतिशत की कमी के बराबर है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या घटकर 2.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में एक प्रतिशत रह गई है।
दोनों अर्थशास्त्रियों ने जोर देकर कहा है कि इस अनुमान में सरकार की ओर से करीब दो तिहाई आबादी को दिए जाने वाले मुफ्त अनाज (गेहूं और चावल) और सार्वजनिक स्वास्थ्य व शिक्षा के आंकड़ों का उपयोग नहीं किया है। लेख में कहा गया है कि भारत में गरीबों की संख्या में जो गिरावट बीते 11 वर्षों में हुई है, इससे पहले वह गिरावट 30 वर्षों में हुई थी।